व्रत और त्यौहार

99% लोग नहीं जानते धनतेरस पर ये 7 चीजें भूलकर भी मत खरीदना वरना मां लक्ष्मी हो जाएंगी नाराज

धनतेरस के दिन खरीदी का बहुत ही अधिक महत्व है, इस दिन कुछ ऐसी वस्तुएं खरीदकर घर नहीं लाना चाहिए जिससे माता लक्ष्मी नाराज हो जाती है। आज के इस वीडियो में धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त और खरीदी का शुभ मुहूर्त समेत वे सब जानकारियां देगे जो धनतेरस मनाने के लिए बहुत जरुरी है। तो दोस्तो वीडियो शुरु करने से पहले धर्म कथाएं चैनल को सबस्क्राइब कीजिए और वीडियो को लाइक कीजिए और कमेंट बॉक्स में लिखिए माता लक्ष्मी आपका हमारे घर में स्वागत है। इस धनतेरस जरुर पाधारें माता,
धनतेरस का पर्व दीपावली के पांच दिवसीय उत्सव का पहला दिन होता है और इसे मुख्य रूप से धन्वंतरि त्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यंत गहरा है। इसका सीधा संबंध धन, समृद्धि और आरोग्य से है।

समुद्र मंथन की कथा धनतेरस का सबसे महत्वपूर्ण पौराणिक आधार है। समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्नों का उदय हुआ था, जिनमें से एक थे भगवान धन्वंतरि, जो अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे। भगवान धन्वंतरि को चिकित्सा के देवता और आयुर्वेद के जनक के रूप में पूजा जाता है। वह सभी प्रकार के रोगों और दुखों से मुक्ति दिलाते हैं। यही कारण है कि धनतेरस पर स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए पूजा की जाती है।

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धनतेरस के दिन लक्ष्मी माता, भगवान गणेश और कुबेर देवता की पूजा की जाती है। यह दिन समृद्धि और धन की वृद्धि का प्रतीक है, इसलिए इस दिन नए बर्तन, सोना, चांदी और आभूषण खरीदना शुभ माना जाता है।


भारतीय समाज में धनतेरस का महत्व सदियों से चला आ रहा है। यह त्योहार न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। व्यापारी और गृहस्थ दोनों के लिए यह पर्व नवीनीकरण और संपत्ति वृद्धि का प्रतीक होता है। व्यापारियों के लिए यह दिन नए आर्थिक सत्र की शुरुआत का दिन होता है, और इस दिन की खरीदारी शुभ मानी जाती है।

धनतेरस का पर्व हर साल कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। यह तिथि हिंदू पंचांग के अनुसार निकाली जाती है। तिथि का निर्धारण चंद्रमा की स्थिति के आधार पर होता है। इस वर्ष 2024 में धनतेरस का पर्व 29 अक्टूबर को मनाया जाएगा, जिसका शुभारंभ सुबह 10:31 बजे से होगा और इसका समापन अगले दिन 30 अक्टूबर को दोपहर 1:15 बजे होगा।

धनतेरस के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम को 6:31 बजे से रात 8:13 बजे तक रहेगा। इस समय के दौरान भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और कुबेर देवता की पूजा की जाती है। पूजा के दौरान घर के मुख्य दरवाजे पर दीप जलाए जाते हैं, जिससे घर में समृद्धि और खुशहाली आती है।

सोना और चांदी खरीदने के लिए भी धनतेरस एक विशेष दिन होता है। इस साल सोना खरीदने का शुभ मुहूर्त 29 अक्टूबर को सुबह 10:31 बजे से लेकर अगले दिन 30 अक्टूबर को सुबह 6:32 बजे तक है। इस मुहूर्त में 20 घंटे और 1 मिनट का समय मिलेगा जिसमें सोने की खरीदारी को शुभ माना जाता है।
धनतेरस के दिन सोना और चांदी खरीदने की परंपरा अत्यंत पुरानी है। हिंदू धर्म में सोने और चांदी का विशेष महत्व है, क्योंकि ये धातुएं न केवल समृद्धि का प्रतीक मानी जाती हैं, बल्कि इनके धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व भी हैं।

सोना और चांदी लक्ष्मी माता और कुबेर देवता से जुड़े हुए हैं। सोना विशेष रूप से लक्ष्मी माता का प्रतीक है, जो धन और समृद्धि की देवी हैं। चांदी का संबंध चंद्रमा से होता है, जो शीतलता और शुद्धता का प्रतीक है। इन धातुओं को खरीदने से घर में आर्थिक समृद्धि और शांति का आगमन होता है।

सोने और चांदी को साकारात्मक ऊर्जा का वाहक माना जाता है। इन धातुओं को घर में रखने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मकता का वास होता है। इसलिए धनतेरस पर इन्हें खरीदना अत्यधिक शुभ माना जाता है।

प्राचीन काल से ही सोने और चांदी को धन और संपत्ति का प्रतीक माना जाता है। भारतीय समाज में सोने और चांदी को संचित करने की परंपरा रही है, और इस परंपरा का सबसे महत्वपूर्ण दिन धनतेरस होता है। समाज में सोने और चांदी का संग्रह आर्थिक सुरक्षा और समृद्धि का प्रतीक है।
धनतेरस पर खरीदारी करना शुभ माना जाता है, लेकिन कुछ विशेष वस्तुएं ऐसी हैं जिन्हें इस दिन खरीदने से बचना चाहिए। यह धार्मिक मान्यता है कि कुछ वस्तुओं को खरीदने से दरिद्रता, दुर्भाग्य और नकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश करती है। चलिए विस्तार से जानते हैं कि किन वस्तुओं को धनतेरस पर खरीदने से बचना चाहिए:

धनतेरस पर प्लास्टिक से बनी चीजें खरीदना अशुभ माना जाता है। प्लास्टिक पर्यावरण के लिए भी हानिकारक होता है, और धार्मिक दृष्टिकोण से इसे सकारात्मक ऊर्जा का वाहक नहीं माना जाता। प्लास्टिक को स्थायित्व और शुद्धता के विपरीत माना जाता है, इसलिए इस दिन प्लास्टिक की वस्तुएं खरीदने से बचना चाहिए।

धनतेरस पर एल्युमिनियम के बर्तन भी नहीं खरीदने चाहिए। धार्मिक दृष्टिकोण से एल्युमिनियम धातु का प्रयोग अशुभ माना गया है। यह धातु घर में नकारात्मक ऊर्जा ला सकती है और समृद्धि को रोक सकती है। इसलिए इस दिन केवल तांबे, पीतल या चांदी के बर्तन खरीदने चाहिए।

धनतेरस पर धारदार वस्तुएं जैसे चाकू, कैंची, ब्लेड आदि की खरीदारी से बचना चाहिए। इन वस्तुओं को खरीदने से घर में विवाद और कलह की संभावना बढ़ती है। धार्मिक दृष्टिकोण से ये वस्तुएं नकारात्मकता का प्रतीक मानी जाती हैं, और इनकी उपस्थिति से घर में शांति भंग हो सकती है।

लोहे की वस्तुओं को धनतेरस पर खरीदने से बचना चाहिए। धार्मिक मान्यता है कि लोहे का संबंध शनि देव से होता है, और शनि की अशुभ दृष्टि को रोकने के लिए इस दिन लोहे की वस्तुओं की खरीदारी से बचा जाता है। यदि लोहे की कोई वस्तु घर में लाई जाती है, तो यह दुर्भाग्य और दरिद्रता का कारण बन सकती है।

धनतेरस के दिन कांच से बनी वस्तुएं और आर्टिफिशियल ज्वेलरी नहीं खरीदनी चाहिए। कांच का संबंध राहु से होता है, जो अशुभ ग्रह माना जाता है। इसके अलावा, नकली आभूषण समृद्धि को कम करते हैं और देवी लक्ष्मी की कृपा पाने में बाधा बन सकते हैं।

धनतेरस पर काले रंग के कपड़े खरीदने से बचना चाहिए। काला रंग नकारात्मकता, अशुभता और शोक का प्रतीक माना जाता है। इस दिन हल्के रंगों का चयन शुभ माना जाता है, जैसे सफेद, पीला, लाल या गुलाबी रंग।

धनतेरस पर मिट्टी के बर्तन खरीदने से बचना चाहिए। धार्मिक मान्यता के अनुसार मिट्टी के बर्तन खरीदने से घर की बरकत कम होती है। ऐसा माना जाता है कि मिट्टी से बनी वस्तुएं आर्थिक समृद्धि को कम कर सकती हैं और घर में दरिद्रता ला सकती हैं।

धनतेरस पर कुछ विशेष वस्तुएं ऐसी हैं जिनकी खरीदारी अत्यधिक शुभ मानी जाती है। ये वस्तुएं धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से समृद्धि, शांति, और सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती हैं।

जैसा कि पहले बताया गया है, सोना और चांदी खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है। ये धातुएं समृद्धि का प्रतीक होती हैं और इन्हें घर में लाने से धनलक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।

धनतेरस पर नया बर्तन खरीदना भी शुभ माना जाता है। बर्तन तांबे, पीतल, या चांदी के होने चाहिए। बर्तन का धार्मिक महत्व होता है, और इसे खरीदने से समृद्धि बढ़ती है।
धनतेरस पर घर के प्रवेश द्वार को सजाने के लिए आम के पत्तों, फूलों और धातु के तोरण खरीदने का विशेष महत्व है। माना जाता है कि लक्ष्मी माता ऐसे घर में प्रवेश करती हैं, जहां साफ-सफाई और सुंदर सजावट होती है। दीपावली का आरंभ धनतेरस से होता है, इसलिए दीपक खरीदना भी शुभ माना जाता है। दीये घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं और घर को प्रकाशमान रखते हैं। मिट्टी के दीपक जलाना खासतौर पर लाभकारी माना जाता है, क्योंकि यह पवित्रता और सात्विकता का प्रतीक है।

धनतेरस पर कुबेर यंत्र खरीदना और इसकी स्थापना करना बहुत शुभ माना जाता है। कुबेर यंत्र भगवान कुबेर का प्रतिनिधित्व करता है, जो धन के देवता माने जाते हैं। इस यंत्र को घर के पूजा स्थान या धन रखने वाली जगह पर स्थापित करने से धन में वृद्धि होती है और आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है।

सोने और चांदी के आभूषण धनतेरस पर खरीदना शुभ होता है। खासकर, लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए चांदी के आभूषण बहुत शुभ माने जाते हैं। आभूषण न सिर्फ समृद्धि का प्रतीक होते हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आभूषणों को धारण करना सदियों से भारतीय परंपरा का हिस्सा रहा है, और इसे आर्थिक समृद्धि का संकेत माना जाता है।

धनतेरस के दिन तुलसी का पौधा खरीदना और घर में लगाना बहुत ही शुभ माना जाता है। तुलसी माता का हिंदू धर्म में विशेष स्थान है, और इसे घर में लगाने से पवित्रता और समृद्धि आती है। तुलसी का पौधा सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत होता है और घर के वातावरण को शुद्ध करता है। इसके अलावा, धनतेरस पर इसे खरीदकर लगाने से स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त होते हैं।

धनतेरस के दिन धातु की मूर्तियाँ, विशेषकर लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियाँ, खरीदना और पूजा करना शुभ माना जाता है। पीतल, चांदी, या तांबे की मूर्तियाँ विशेष रूप से पूजन के लिए उपयोगी होती हैं। मूर्तियाँ घर में सकारात्मक ऊर्जा को बनाए रखती हैं और जीवन में शांति और समृद्धि लाने में सहायक होती हैं।

6. धनतेरस पर विशेष पूजा विधि
धनतेरस के दिन पूजा करने की विशेष विधि होती है, जिसे पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ संपन्न किया जाता है। इस दिन मुख्य रूप से भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी, भगवान गणेश और कुबेर देवता की पूजा की जाती है।

पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री का उपयोग किया जाता है:

लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियाँ
धूप, दीप, फूल और अगरबत्ती
चावल, रोली, मौली
चांदी का सिक्का या अन्य धातु के सिक्के
मिठाई और फल
कमल का फूल (विशेषकर लक्ष्मी पूजा के लिए)
तांबे या पीतल का कलश
पूजा विधि:
स्नान और स्वच्छता: धनतेरस पर सबसे पहले पूरे घर की साफ-सफाई की जाती है। पूजा स्थल को गंगाजल या शुद्ध जल से पवित्र किया जाता है। स्वयं को स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।

लक्ष्मी और गणेश स्थापना: पूजा के लिए लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियों को स्वच्छ और पवित्र स्थान पर स्थापित किया जाता है। इसके साथ ही कुबेर देवता का यंत्र या मूर्ति भी रखी जाती है।

दीप प्रज्वलन: पूजा स्थल पर दीपक जलाएं और धूप, अगरबत्ती जलाएं। पूरे घर में दीप जलाने की परंपरा है, ताकि देवी लक्ष्मी का आगमन हो सके।

मंत्रोच्चारण: धनतेरस पर देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश और भगवान धन्वंतरि के मंत्रों का जाप किया जाता है। लक्ष्मी जी के लिए “श्री लक्ष्मी सूक्त” का पाठ किया जाता है, वहीं भगवान गणेश के लिए “गणेश मंत्र” का जाप किया जाता है।

प्रसाद अर्पण: लक्ष्मी-गणेश को मिठाई, फल, और चावल अर्पण करें। इसके बाद उन्हें जल चढ़ाएं और आरती करें। कुबेर देवता की पूजा करके उन्हें चांदी का सिक्का अर्पण करें।

दीपदान: धनतेरस के दिन विशेष रूप से घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाने का विशेष महत्व है। इसे “दीपदान” कहा जाता है, जो समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक होता है। इससे घर के द्वार पर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।

वृक्ष पूजा: कुछ परिवारों में तुलसी या पीपल के पेड़ की पूजा भी धनतेरस पर की जाती है। इन पेड़ों की पूजा से पर्यावरण की शुद्धि होती है और घर में सुख-शांति बनी रहती है।

धनतेरस के पर्व को लेकर भारत के विभिन्न हिस्सों में कई लोक मान्यताएँ और परंपराएँ प्रचलित हैं। ये मान्यताएँ क्षेत्रीय परंपराओं, पौराणिक कथाओं और सांस्कृतिक विविधताओं पर आधारित हैं। विभिन्न राज्यों में धनतेरस के पर्व को अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है, और हर क्षेत्र में इसे मनाने की एक विशेष परंपरा होती है।

उत्तर भारत में धनतेरस मुख्य रूप से माता लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा से जुड़ा हुआ है। इस दिन यहां घरों में दीप जलाए जाते हैं और पूरे घर को रंगोली से सजाया जाता है। लोग नए बर्तन, आभूषण और अन्य धातु की वस्तुएं खरीदते हैं। इसके अलावा, सोने-चांदी के सिक्कों का आदान-प्रदान और उन्हें पूजास्थल पर रखना समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

दक्षिण भारत में इस दिन भगवान यमराज की पूजा का विशेष महत्व है। यमदीपदान की परंपरा के तहत यमराज के नाम पर दीप जलाकर मृत्यु से मुक्ति और स्वास्थ्य लाभ की कामना की जाती है। इस परंपरा के अनुसार, घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाया जाता है और यमराज से परिवार की सुरक्षा के लिए प्रार्थना की जाती है।

गुजरात की मान्यताएँ:
गुजरात में इस पर्व को धनतेरस या धन त्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। यहाँ व्यापारी वर्ग के लोग विशेष रूप से इस दिन नई खाता-बही (लेखा पुस्तक) खरीदते हैं और अपने व्यावसायिक वर्ष की शुरुआत करते हैं। इसे “चोपड़ा पूजन” कहा जाता है, जिसमें लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ व्यापारी अपने व्यापार में सफलता और समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं।

महाराष्ट्र में भी धनतेरस का पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है। यहाँ लोग इस दिन विशेष रूप से नए वस्त्र, धातु के बर्तन, और सोने-चांदी की वस्तुएं खरीदते हैं। महाराष्ट्र में इस दिन स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना के लिए दीप जलाने की परंपरा है, जिसे “दीपदान” कहा जाता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में इस पर्व का मुख्य उद्देश्य कृषि और पशुपालन से जुड़ा होता है। किसान धनतेरस के दिन अपने पशुओं की पूजा करते हैं और कृषि उपकरणों की सफाई और पूजा करते हैं। यह परंपरा इस विश्वास पर आधारित है कि समृद्धि और भरण-पोषण के लिए कृषि और पशुधन का महत्वपूर्ण स्थान है।

धनतेरस एक पुराना त्योहार है, लेकिन आधुनिक युग में इसके रूप और मनाने के तरीकों में कुछ बदलाव आए हैं। जहां पहले लोग केवल अपने आसपास के बाजारों से बर्तन, आभूषण और धातु की वस्तुएं खरीदते थे, वहीं अब ऑनलाइन खरीदारी और डिजिटल भुगतान का प्रचलन बढ़ गया है। कई लोग अब ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट्स के माध्यम से सोने-चांदी की खरीदारी करते हैं और ई-गोल्ड या डिजिटल गोल्ड खरीदते हैं।

आजकल धनतेरस के समय परंपरागत बर्तन और आभूषणों के साथ-साथ लोग इलेक्ट्रॉनिक सामान, गाड़ियाँ, और अन्य तकनीकी वस्तुएं भी खरीदने लगे हैं। कई लोग इस दिन नई गाड़ी, मोबाइल फोन, लैपटॉप, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की खरीदारी को शुभ मानते हैं।

वर्तमान समय में पर्यावरण संरक्षण के प्रति बढ़ती जागरूकता के कारण लोग अब प्लास्टिक की वस्तुओं से दूर रहकर पर्यावरण-अनुकूल सामग्रियों का उपयोग कर रहे हैं। लोग मिट्टी के दीपक, पुनर्नवीनीकरण सामग्री और जैविक रंगों का उपयोग करने लगे हैं। पर्यावरण संरक्षण और स्थायी जीवन शैली की ओर बढ़ते रुझान ने धनतेरस के त्योहार के तरीके को बदल दिया है।

धनतेरस पर सोशल मीडिया का भी बड़ा प्रभाव पड़ा है। लोग अपने अनुभवों को साझा करते हैं, नए विचार और सजावट की विधियाँ सीखते हैं, और त्योहार के अवसर पर अपने प्रियजनों को शुभकामनाएँ देते हैं। सोशल मीडिया पर लोग अपने घरों की सजावट, खरीदारी की तस्वीरें और पूजा की विधियों को साझा करते हैं, जिससे त्योहार के बारे में जागरूकता और जुड़ाव बढ़ा है।
धनतेरस का सीधा संबंध स्वास्थ्य और समृद्धि से है। भगवान धन्वंतरि, जो आयुर्वेद के जनक माने जाते हैं, इस दिन की पूजा के मुख्य देवता होते हैं। उनका नाम ही इस बात का प्रतीक है कि यह पर्व न केवल आर्थिक समृद्धि बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी महत्व देता है।

भगवान धन्वंतरि चिकित्सा और आरोग्य के देवता माने जाते हैं। उनके आशीर्वाद से आरोग्य, दीर्घायु और निरोगी काया प्राप्त होती है। धनतेरस के दिन उनकी पूजा करके स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ती है और आयुर्वेद के सिद्धांतों का पालन करने की प्रेरणा मिलती है।

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