पूर्व भारतीय क्रिकेटर मनोज तिवारी ने अपने करियर को पीछे मुड़कर देखा है और अब कुछ मौकों को चूकने का अफसोस जता रहे हैं। खासकर तत्कालीन कप्तान एमएस धोनी के फैसलों पर भी सवाल उठा रहे हैं।
तिवारी का इंटरनेशनल करियर 7 सालों में 12 वनडे और 3 टी20 मुकाबलों तक सीमित रहा। इस दौरान उन्हें कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले। उनकी खीझ उस वक्त चरम पर पहुंच गई थी, जब दिसंबर 2011 में वेस्टइंडीज के खिलाफ शतक जड़ने के बावजूद 14 मैचों तक उन्हें बाहर ही बिठाए रखा गया। ये फैसला उन्हें समझ नहीं आया, खासकर उस समय जब विराट कोहली और रोहित शर्मा जैसे बड़े खिलाड़ी भी संघर्ष कर रहे थे।
तिवारी धोनी से आमने-सामने बात करना चाहते थे, यह समझने के लिए कि शानदार प्रदर्शन के बावजूद उन्हें बाहर क्यों बिठाया गया। साथ ही, उन्हें इस बात का मलाल है कि ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के खिलाफ घरेलू और अभ्यास मैचों में शानदार प्रदर्शन के बावजूद टेस्ट कैप नहीं मिल पाया। उनकी निराशा का कारण यह भी था कि लगातार योगदान देने के बावजूद युवराज सिंह जैसे खिलाड़ियों को तरजीह दी गई।
पेशेवर क्रिकेट को अलविदा कहते हुए, तिवारी चूके हुए मौकों के असर और एक खिलाड़ी के आत्मविश्वास पर पड़ने वाले नुकसान के बारे में भी बात कर रहे हैं। हालांकि, इन झटकों के बावजूद, वह 147 प्रथम श्रेणी मैचों में 10,000 से अधिक रन बनाने और बंगाल के खेल मंत्री के रूप में अपनी भूमिका के साथ एक विरासत छोड़ रहे हैं। अपने स्पष्ट खुलासे के माध्यम से, तिवारी क्रिकेट की प्रतिस्पर्धात्मक दुनिया में एथलीटों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों और अनिश्चितताओं पर प्रकाश डालते हैं।