धर्म कथाएं

नवरात्रि मे सिमटा है जीवन का हर पहलू : ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास

भारत में नवरात्रि को पर्व के रूप में मनाया जाता है। सबसे ज्यादा लोकप्रिय शारदीय नवरात्रि है, जोकि वर्तमान समय में पूरे देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है। शायद ही किसी को पता हो कि एक वर्ष में 4 नवरात्रि होते हैं। प्रत्येक नवरात्रि के अलग-अलग महत्व होते हैं। देवी पुराण में ऐसा कहा गया है कि साल भर में मुख्य रुप से नवरात्र का त्योहार 2 बार आता है।

नवरात्र शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- नव और रात्र। नव का अर्थ है नौ और रात्र शब्द में पुनः दो शब्द निहित हैं: रा+त्रि। रा का अर्थ है रात और त्रि का अर्थ है जीवन के तीन पहलू- शरीर, मन और आत्मा।

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anish vyas astrologer

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इंसान को तीन तरह की समस्याएं घेर सकती हैं- भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक। इन समस्याओं से जो छुटकारा दिलाती है वह रात्रि है। रात्रि या रात आपको दुख से मुक्ति दिलाकर आपके जीवन में सुख लाती है। इंसान कैसी भी परिस्थिति में हो, रात में सबको आराम मिलता है। रात की गोद में सब अपने सुख-दुख किनारे रखकर सो जाते हैं

पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि साल में दो बार नवरात्रि रखने का विधान है। चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नौ दिन अर्थात नवमी तक, ओर इसी प्रकार ठीक छह महीने बाद आश्चिन मास, शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक माता की साधना और सिद्धि प्रारम्भ होती है। दोनों नवरात्रों में शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्व दिया जाता है। नवरात्रि के नौ दिनों में यज्ञ और हवन का सिलसिला चलता रहता है। ये यज्ञ संसार में दुख और दर्द के हर तरह के प्रभाव को दूर कर देते हैं। नवरात्रि के हर दिन का अपना महत्व और प्रभाव है और उस दिन के अनुरूप ही यज्ञ और हवन किए जाते हैं। जीवन में हमें बुरे और अच्छे दोनों तरह के गुण प्रभावित करते हैं।

नवरात्रि हमें यह सिखाते हैं कि किस तरह इंसान अपने अंदर की मूलभूत अच्छाइयों से नकारात्मकता पर विजय प्राप्त कर सकता है और स्वयम् के अलौकिक स्वरूप से साक्षात्कार कर सकता है। जिस तरह मां के गर्भ में नौ महीने पलने के बाद ही एक जीव का निर्माण होता है ठीक वैसे ही ये नौ दिन हमें अपने मूल रूप, अपनी जड़ों तक वापस ले जाने में अहम भूमिका अदा करते हैं। इन नौ दिनों का ध्यान, सत्संग, शांति और ज्ञान प्राप्ति के लिए उपयोग करना चाहिए।

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि हिन्दू पंचाग के अनुसार चैत्र यानि मार्च-अप्रैल में मां दुर्गा के पहले नवरात्रि पर 9 दिन आराधना जाती है, जिन्हें वासंतीय नवरात्र कहा जाता है। अश्विन मास यानि सितम्बर-अक्टूबर में आने वाले नवरात्रि को मुख्य नवरात्र कहा जाता है, जिसे जनमानस शारदीय नवरात्रि के नाम से जानता है। शारदीय नवरात्र के बाद से ही देश भर में त्योहारों की धूम मच जाती है। शारदीय नवरात्रि के समापन पर ही दशहरे का त्योहार मनाया जाता है जो कि अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। इसके अलावा एक वर्ष के भीतर 2 गुप्त नवरात्रि भी मनाई जाती है जो गृहस्थों के लिए नहीं होती है। यह दोनों नवरात्रि आषाढ़ यानि जून-जुलाई और दूसरा माघ यानि जनवरी-फरवरी में आते हैं।

इस प्रकार से साल में चार नवरात्रि आती हैं। जिसमें जनसामान्य के लिए बासंतिक और शारदीय नवरात्रि ही प्रमुख है। दो गुप्त नवरात्रों में ऋषि मनीषि साधना और आराधना करते हैं।

इस बार 26 सितंबर को कलश स्थापना के साथ ही पहली पूजा शुरू हो जाएगी। विजयादशमी 5 अक्टूबर को मनाया जाएगा। शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा की आराधना के लिए नवरात्रा सर्वोत्तम समय माना जाता है। भगवान राम ने नवरात्रि में मां भगवती की आराधना से देवी को प्रसन्न कर विजयादशमी के दिन रावण का संहार किया था।

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि नौ दिन तक चलने वाले पर्व नवरात्रि के तीन-तीन दिन तीन देवियों को समर्पित होते हैं। ये तीन देविया हैं- मां दुर्गा (शौर्य की देवी), मां लक्ष्मी (धन की देवी) और मां सरस्वती (ज्ञान की देवी)। इन नौ दिनों में बाकी सारे क्रियाकलापों से ऊपर समारोह और व्रत को प्राथमिकता दी जाती है। हर शाम को डांडिया और गरबा जैसे धार्मिक नृत्य के जरिए मां दुर्गा की पूजा की जाती है।

नौ रातों का यह उत्सव आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रथमा तिथि को आरंभ होता है। इस दौरान नौ ग्रहों की प्रतिष्ठा की जाती है। 8वें और 9वें दिन मां दुर्गा की पूजा के साथ विजयाष्टमी और महानवमी मनाई जाती है। इस दौरान 700 श्लोकों वाली दुर्गा शप्तशती जिसे देवी महात्म्य के नाम से भी जाना जाता है, का पाठ किया जाता है साथ ही दुर्गा चालीसा और देवी को समर्पित विभिन्न मंत्रों एवं श्लोकों के जरिए उन देवियों की आराधना की जाती है जिन्होंने दुष्टों का संहार किया।

पहले तीन दिनः इस दौरान नवरात्रि के पहले दिन पूजाघर में मिट्टी का एक तख्त बनाया जाता है जिसमें जौं बोए जाते हैं। ये तीन दिन शक्ति और ऊर्जा की देवी मां दुर्गा को समर्पित होते हैं।

दूसरे तीन दिनः इन तीन दिनों में शांति और धन-सौभाग्य की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

तीसरे दो दिनः नवरात्र के 7वें और 8वें दिनों में मां सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है जो ज्ञान और आध्यात्म की प्रतीक हैं। ज्ञान एवम् आध्यात्म सांसारिक मोह-माया से हमारी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। आठवें दिन यज्ञ किया जाता है।

महानवमीः इस रंगबिरंगे, ऊर्जा से भरपूर पर्व का समापन महानवमी को होता है। इस दिन कन्या पूजा की जाती है। नौ कुंवारी कन्याओं को भोजन कराया जाता है। इन नौ कन्याओं की पूजा मां के नौ रूप मानकर की जाती है।

भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि आश्चिन मास में शुक्लपक्ष कि प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर नौ दिन तक चलने वाले नवरात्रि शारदीय नवरात्रि कहलाते हैं। नव का शाब्दिक अर्थ नौ है और इसे नव अर्थात नया भी कहा जाता है। शारदीय नवरात्रों में दिन छोटे होने लगते है। मौसम में परिवर्तन शुरू हो जाता है। प्रकृ्ति सर्दी की चादर में लिपटने लगती है। ऋतु के परिवर्तन का प्रभाव लोगों को प्रभावित न करे, इसलिए प्राचीन काल से ही इन दिनों में नौ दिनों के उपवास का विधान है।

दरअसल, इस दौरान उपवासक संतुलित और सात्विक भोजन कर अपना ध्यान चिंतन और मनन में लगकर स्वयं को भीतर से शक्तिशाली बनाता है। इससे न वह उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त करता है बल्कि वह मौसम के बदलाव को सहने के लिए आंतरिक रूप से खुद को मजूबत भी करता है।नवरात्रों में माता के नौ रुपों की आराधना की जाती है। माता के इन नौ रुपों को हम देवी के विभिन्न रूपों की उपासना, उनके तीर्थो के माध्यम से समझ सकते है।

नवरात्र का वैज्ञानिक आधार

भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि नवरात्रि हिंदुओं के पवित्र त्योहारों में से एक है। इन 9 दिनों में नौ-दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है। साल में दो बार चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि के रूप में मां दुर्गा के नौ रूपों की अराधना की जाती है। इस दौरान घर-घर में भजन-कीर्तन आदि का आयोजन होता है। शारदीय नवरात्रि को पूर्वी भारत में दुर्गापूजा और पश्चिमी भारत में डांडिया के रूप में मनाया जाता है।

नवरात्र शब्द से ‘नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध’ होता है। इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है क्योंकि ‘रात्रि’ शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। यही कारण है कि दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है। यदि, रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता। जैसे- नवदिन या शिवदिन। लेकिन हम ऐसा नहीं कहते।

नवरात्रि के वैज्ञानिक महत्व को समझने से पहले हम नवरात्र को समझ लेते हैं। मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है- विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से नौ दिन अर्थात नवमी तक। इसी प्रकार इसके ठीक छह मास पश्चात् आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक नवरात्र मनाया जाता है। लेकिन, फिर भी सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। इन नवरात्रों में लोग

अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग-साधना आदि करते हैं। यहां तक कि कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। नवरात्रों में शक्ति के 51 पीठों पर भक्तों का समुदाय बड़े उत्साह से शक्ति की उपासना के लिए एकत्रित होता है और जो उपासक इन शक्ति पीठों पर नहीं पहुंच पाते वे अपने निवास स्थल पर ही शक्ति का आह्वान करते हैं।

हालांकि आजकल अधिकांश उपासक शक्ति पूजा रात्रि में नहीं बल्कि पुरोहित को दिन में ही बुलाकर संपन्न करा देते हैं। यहां तक कि सामान्य भक्त ही नहीं अपितु, पंडित और साधु-महात्मा भी अब नवरात्रों में पूरी रात जागना नहीं चाहते और ना ही कोई आलस्य को त्यागना चाहता है। आज कल बहुत कम उपासक ही आलस्य को त्याग कर आत्मशक्ति, मानसिक शक्ति और यौगिक शक्ति की प्राप्ति के लिए रात्रि के समय का उपयोग करते देखे जाते हैं।

जबकि मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया। अब तो यह एक सर्वमान्य वैज्ञानिक तथ्य भी है कि रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि हमारे ऋषि-मुनि आज से कितने ही हजारों-लाखों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे। आप अगर ध्यान दें तो पाएंगे कि अगर दिन में आवाज दी जाए, तो वह दूर तक नहीं जाती है, किंतु यदि रात्रि में आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है। इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं।

रेडियो इस बात का जीता-जागता उदाहरण है। आपने खुद भी महसूस किया होगा कि कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात सुनना मुश्किल होता है जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से सुना जा सकता है। इसका वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार रोकती हैं ठीक उसी प्रकार मंत्र जाप की विचार तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पड़ती है। इसीलिए ऋषि-मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है। मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज के कंपन से दूर-दूर तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है।

यही रात्रि का तर्कसंगत रहस्य है। जो इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपनी शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं, उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि, उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य होती है।

नवरात्र के पीछे का वैज्ञानिक आधार यह है कि पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक साल की चार संधियां हैं जिनमें से मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं। अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए तथा शरीर को शुद्ध रखने के लिए और तन-मन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम ‘नवरात्र’ है।

नवरात्र में नौ दिन या नौ रात को गिना जाना चाहिए?

भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि अमावस्या की रात से अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम चलने से नौ रात यानी ‘नवरात्र’ नाम सार्थक है। चूंकि यहां रात गिनते हैं इसलिए इसे नवरात्रि यानि नौ रातों का समूह कहा जाता है। रूपक के द्वारा हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है और, इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है।

इन मुख्य इन्द्रियों में अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुद्धि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है। इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए नौ दिन, नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं।

हालांकि शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन, सफाई या शुद्धि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर 6 माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है जिसमें सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुद्धि, साफ-सुथरे शरीर में शुद्ध बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुद्ध होता है, क्योंकि स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है।

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