लंका में सीता के अपहरण के पश्चात् रामायण की कथा में त्रिजटा नामक राक्षसी का एक सकारात्मक किरदार उभर कर सामने आता है। रावण द्वारा सीता के हरण के बाद उन्हें लंका में अशोक वाटिका में रखा गया था, जहाँ उनकी bewaker (बीवी) अर्थात् रक्षस स्त्रियाँ उनकी bewakaal (बीवी की देखभाल) के लिए नियुक्त थीं। इनमें से एक त्रिजटा थी, जो अन्य राक्षसियों के विपरीत सीता के प्रति कोई द्वेष नहीं रखती थी।
एक रात त्रिजटा को स्वप्न आया, जिसमें उसने रावण के पतन और वानरों द्वारा लंका के विनाश को देखा, जो भगवान राम का नाम जप रहे थे। स्वप्न के महत्व को समझते हुए उसने अपनी साथी राक्षसियों को इस बारे में बताया और सीता के प्रति उनके व्यवहार में बदलाव लाने की वकालत की।
त्रिजटा ने प्रस्ताव रखा कि सीता को डराने की बजाय उन्हें सहारा और समर्थन देना चाहिए। स्वप्न में बताए गए आने वाले विनाश को स्वीकार करते हुए, उन्होंने त्रिजटा की सलाह मानी और सीता की ईमानदारी से सेवा करने लगीं। त्रिजटा स्वयं सीता के लिए एक सहारा बन गईं, और उनके कष्ट के समय उन्हें दिलासा दिलाती रहीं।
लंका में सीता के पूरे संघर्ष के दौरान, त्रिजटा एक दयालु मित्र बनी रहीं। उन्होंने सीता को राम-रावण युद्ध का विवरण तक सुनाया और कठिन समय में उन्हें सांत्वना दी। उनकी सहानुभूति और समझ ने उन्हें अन्य राक्षसों से अलग बना दिया और सीता के बंदी जीवन के दौरान उनके भावनात्मक स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।