सनातन धर्म में एकादशी व्रत का महत्व और इससे जुड़ी 7 खास बातें जानें

चैत्र महीना हिन्दू नववर्ष की शुरुआत का महीना है, जिसमें कामदा और वरुथिनी एकादशी व्रत महत्वपूर्ण हैं। कहा जाता है कि कामदा एकादशी से मोक्ष प्राप्त होता है और वरुथिनी एकादशी से सौभाग्य और पापों का नाश होता है। 

वैशाख महीने में मोहिनी और अपरा एकादशी तिथियाँ होती हैं। जो व्यक्ति विवाह की इच्छा रखते हैं या जिनके वैवाहिक जीवन में शांति नहीं है, उन्हें मोहिनी एकादशी का व्रत करना चाहिए। अपरा एकादशी का व्रत करने से जातक के सभी पाप मिट जाते हैं। 

श्रावण महीने में पुत्रदा एकादशी व्रत से संतान की प्राप्ति होती है और अजा एकादशी व्रत से आर्थिक समस्या से छुटकारा मिलता है।

कार्तिक महीने की एकादशी में प्रबोधिनी एकादशी और उत्पन्ना एकादशी शामिल हैं। प्रबोधिनी एकादशी को देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है, जिससे सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। उत्पन्ना एकादशी के व्रत से पितृमोक्ष और एक हजार वाजपेय यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है। 

फाल्गुन महीने में दो महत्वपूर्ण एकादशी होती हैं - आमलकी एकादशी और पापमोचनी एकादशी। आमलकी एकादशी व्रत करने से जातकों को रोग और संताप से मुक्ति मिलती है, जबकि पापमोचनी एकादशी व्रत से समस्त पाप मिट जाते हैं।

पौष महीने में भी पुत्रदा एकादशी और षटतिला एकादशी होती हैं। पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से संतान की प्राप्ति होती है, जबकि षटतिला एकादशी करने से धन-लक्ष्मी का आगमन होता है और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। 

हिन्दू कैलेंडर के चौथे महीने आषाढ़ में देवशयनी और कामिका एकादशी का आयोजन होता है। जिन जातकों को परिवारिक कलह से परेशानी है, उन्हें देवशयनी एकादशी का व्रत करना चाहिए, जिससे घर-परिवार में सुख-सौभाग्य बढ़ सकता है।